कुलगीत -

प्रफुल्ल शतदल-सा स्निग्ध सुरभित
विराट विद्या सदन हमारा |
अगाध गरिमा-गरिष्ठ वीणा
निनादिनी का यह नेत्र तारा ||

 
 

साहित्य-संस्कृति-कला-त्रिवेणी
में स्नान नख-शिख सुरम्य वसुधा |
अतुल्य मेधा के जान्हवी की
यहाँ तरंगित अबाध धारा ||

विभिन्न विषयों की ब्योमचुम्बी
स्तुति विधा स्नातकोत्तरीया |
सुरभ्य ग्रामीण अंचलावृत्त
सुज्ञान पादक का पुष्प प्यारा ||

 
 

विकास जलभर से सांद्र पंकिल
प्रसून-परियल से मौलि मण्डित |
उलः स्मरण योग्य दिव्य पंडित
श्री कमलापति का तनय दुलारा ||

प्रफुल्ल शतदल-सा स्निग्ध सुरभित
विराट विद्या सदन हमारा |
अगाध गरिमा-गरिष्ठ वीणा
निनादिनी का यह नेत्र तारा ||

 

महाविद्यालय - वन्दना

अन्नत आलोक विश्वमूर्ते,
                    सफल हमारी ये साधना हो।

न हो दीनता न हो पलायन,
                    स्वदेश सेवा की भावना हो।

हमारे जीवन के पथ दुर्गम,
                    बने हमारे विकास साधन।

ये आत्मबल हो हमारा सम्बल,
                    हमारे जीवन की प्रेरण हो।